Ayurvedic Treatment of Monkey Pox

How to prevent monkeypox naturally?

Ayurvedic Treatment of Monkey Pox हमारे देश में कोविड-19 (Covid-19) कोरोना वायरल जैसे महामारी से लड़ने के लिए सभी पैचिओं ने अपनी जी जान लगाकर कई प्रयास कर इस घातक महामारी जैसे रोग पर नियंत्रण पाया है और इसी बीच एक नये रंग मकीपाक्स (Monkey Pox) के फैलने की अनुशंसा मिल रही है। यह रोग भी हमारे भारत देश में बाहरी देशों द्वारा आया है। पहले भारत में इसके रोगी नहीं मिले परंतु कुछ दो महीने पहले इसके रोगी भारत में भी मिलने लगे और संक्रमण द्वारा यह रोग फैलने लगा तथा रोगियों की संख्या बढ़ने लगी। मंकीपाक्स क्या है? Ayurvedic Treatment of Monkey Pox

Ayurvedic Treatment of Monkey Pox
Ayurvedic Treatment of Monkey Pox

मंकीपाक्स एक ऑर्थोपॉक्स वायरस संक्रमण (Orthopox Virus Infection) दुर्लभ बीमारी है जो कि चेचक या चिकनपॉक्स के समान दिखाई देती है। यह बीमारी सबसे

पहले वर्ष 1958 में बंदरों में दिखाई दी थी, जिसके कारण इसे मंकीपाक्स नाम दिया गया। उसके बाद वर्ष 1970 में यह एक युवा में सबसे पहले मंकोपाक्स का मामला सामने आया था। आयुर्वेद में किसी भी रोग के होने का कारण

शरीर में स्थित वात, पित्त, कफ, रक्त के दूषित होना बताया गया है तथा मंकीपाक्स के लक्षणों के आधार पर जो कि एक संक्रमित रोग है, इसकी तुलना मसूरिका जैसे रोग से कर सकते हैं। Ayurvedic Treatment of Monkey Pox आयुर्वेद अनुसार जिस प्रकार के लक्षण मंकीपाक्स रोग में नजर आ रहे हैं, उसे देखते हुए इस रोग को मसूरिका व्याधि को श्रेणी में रखा जा सकता है। आयुर्वेद के अनुसार मसूरिका मुख्य रूप से पित्त- रक्त दृष्टी, स्मॉलपॉक्स (Small Pox) तथा मकोपॉक्स जैसे रोग आते हैं। चूंकि मंकीपाक्स एक संक्रमित रोग है और संक्रमित

मंकीपाक्स एक फैलने वाला रोग है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से फैल सकता है।

व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने से फैलता है. इसलिए इसे औपसर्गिक व्याधि यानी संचारी रोग कहा जा सकता है।

(cause of monkeypox ) मंकीपाक्स का कारण :

मंकीपाक्स एक फैलने वाला रोग है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से फैल सकता है। यह व्यक्ति के किसी संक्रमित व्यक्ति या जानवर के निकट संपर्क के माध्यम से से या वापरस से. दूषित सामग्री के माध्यम मनुष्यों में फैलता है। ऐसा माना जाता है कि यह चूहों, गिलहरी, बंदर जैसे जानवरों से फैलता है। यह रोग शरीर के घावों, तरल पदार्थ, असन बूंदों और दूषित सामग्री, जैसे बिस्तर, कपड़े आदि के माध्यम से भी फैलता है। यह वायरस, चेचक की तुलना में कम संक्रामक है और कम गंभीर बीमारी का कारण बनता है।

Ayurvedic Treatment of Monkey Pox
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(monkeypox symptoms) मंकीपाक्स के लक्षण :

मंकीपाक्स के लक्षण 6-13 दिनों के बीच नजर आते हैं। Ayurvedic Treatment of Monkey Pox जो आमतौर पर 2-4 सप्ताह तक यह सकते हैं। मंकीपाक्स होने पर रोगी को मुख्यतः निम्न लक्षण दिखाई देते हैं- -बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, पीठ दर्द, लसीका ग्रथियों में सूजन, ठंड लगना, थकावट, इम्यूनिटी का कम होना।

बुखार आने के 1 से 3 दिनों के भीतर (कभी-कभी अधिक) रोगों में एक दाने का विकास होता है जो प्रायः चेहरे से शुरू होता है और फिर शरीर के अन्य भागों में फैलता है। मंकीपाक्स से बने घाव ठीक होने से पहले निम्नलिखित चरणों से गुजरते हैं- उपरंजकयुक्त (Macules) पपुल्स (Papules) पुटिकाए (Vesicles)

छाले (Pustules)

स्कैब्स (Scabs)

मंकोपाक्स 21 दिनों में अपने आप ठीक हो जाता है। Ayurvedic Treatment of Monkey Pox गंभीर स्थिति में ही रोगी को अस्पताल ले जाना पड़ सकता है। मंकीपाक्स, चिकनपॉक्स या चेचक से ज्यादा अलग नहीं है। दोनों के लक्षण काफी समान हैं। परंतु मंकीपाक्स होने पर लसीका ग्रंथियों (Lymph Nodes) में सूजन आना इसको विशेष पहचान है।

मकीपाक्स में उपचार :

(Monkey Pox Ayurvedic Treatment) मंकीपाक्स का आयुर्वेदिक उपचार :

मंकीपाक्स का अभी तक कोई स्थायी उपचार नहीं है। चिकित्सकों का कहना है कि लक्षणों के आधार पर इस बीमारी में एंटीवायरल औषधीयाँ दे सकते हैं। ये भी बताया जा रहा है कि स्मॉलपॉक्स वैक्सीन इस रोग में 85 प्रतिशत तक प्रभावी हो सकता है। -चिकित्सकों का कहना है कि शुरूआती लक्षणों के आधार पर राहत पाने के लिए आयुर्वेद उपचार भी लाभदायक सिद्ध हो सकता है।

आयुर्वेद अनुसार इस रोग को मसुरिका व्याधि की श्रेणी में बताया है जो कि एक पित्त-रक्त दुष्टी जन्य व्याधि है। अतः हमे उन चीजो से बचना चाहिए जो कि हमारे शरीर में पित्त रक्त

की दुष्टी करे। पित्त रक्त की दुष्टी को दूर करने

के लिए निम्न उपचार बताए गए है।

लंघन (उपवास) इसका मतलब कुछ न खाना या फिर हल्का सुपाच्य भोजन का सेवन करे।

पित्त-रक्त शामक औषधीयों का सेवन

जैसेः त्रिवृत, आरग्वध, त्रिफला, पित्तपापड़ा, विडंग, कुटकी, कालमेघ आदि।

घावो तथा दानो की सफाई और धोने के

Ayurvedic Treatment of Monkey Pox

■ लिए नीम के पत्र क्वाथ, त्रिफला काथ,

आरगवध क्वाथ का उपयोग करें।

■ रोगी के रोग प्रतिरोध क्षमता (Immu- nity) को बढ़ाने के लिए च्यवनप्राश, गिलोय, कूष्माण्डवलेह जैसे औषधीयों का सेवन करें।

■ चूंकि यह रोग एक पित्त रक्त दुष्टी जन्य

रोग है। अतः इसमे पंचकर्म चिकित्सा भी लाभकारी सिद्ध हो सकती है। पंचकर्म में भी मृदु विरेचन का प्रयोग करे। ■

■ श्वसन संस्थान को प्रबल करने के लिए, प्राणायाम अनुलोम विलोम, भ्रामरी आदि लाभकारी सिद्ध है।

पथ्य –

सुपाच्य लघु आहार जैसे मूंग दाल की खिचड़ी, दलिया अंगूर, अनार, पुराना साठी चावल, लौकी, परमल आदि।

अपथ्य –

अधिक तैलीय, मसालेदार पदार्थ का सेवन न करे। • नए चावल, पत्तेदार सब्जीयाँ का सेवन

न करे।

धूम्रपान का सेवन न करे।

जंक फूड का सेवन न करे।
यदि समय रहते ही रोग के प्रारंभ अवस्था में ही हम आयुर्वेद उपचार शुरू कर दे तो हम इस रोग की गंभीरता को कम कर सकते है।

(Prevention of monkeypox) मंकीपॉक्स से बचाव के तरीके :

■ उन जानवरो सहित जो बीमार है के संपर्क में आने से बचे जो वायरस को शरण दे सकते है।

■ संक्रमित को आइसोलेट करे एवं रोगी से अन्य व्यक्ति को दूरी बनाकर रखनी चाहिए।

■ संक्रमित व्यक्ति के नाक और मुँह को मास्क से ढकना चाहिए।

■ रोगी के त्वचा के घावो को चादर, गाऊन, ग्ल्वस से ढककर रखे जब तक वे पूरी तरह से सूख न जाए।

■ संक्रमित व्यक्ति द्वारा उपयोग किए गए सामग्री के संपर्क में आने से बचे।

■ साबुन और पानी या सैनिटाइजर का उपयोग करके हाथो की स्वच्छता बनाए रखे।

■ जांच की पुष्टि के लिए तुरंत स्वास्थ्य सुविधा को सूचित करे।

■ अगर किसी में मंकीपाक्स के लक्षण दिखाई दे तो घबराँए नहीं, तुरंत डॉक्टर से संपर्क करे।

■ मंकीपाक्स से बचने के लिए सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन का पालन करे।

■ दुनिया के कई देशो में मंकीपाक्स से बचाव के लिए चेचक का टीका-वैक्सीनेशन किया जा रहा है। तात्पर्य हम टीका भी लगवा सकते है।

Ayurvedic Treatment of Monkey Pox विशेषज्ञों का मानना है कि मंकीपॉक्स के वैश्विक महामारी में बदलने का जोखिम कम है। परंतु जिस रफ्तार से ये अन्य देशो में फैल रहा है। परंतु जिस रफ्तार से ये अन्य देशो में फैल रहा है, उसे देखते हुए हम कह सकते है अगर इसे नजर अंदाज किया गया तो हमारे देश भी फैलने में इसे ज्यादा समय नहीं लगेगा।

जिस तरह हमने कोविड-19 जैसे महामारी का सामना और आज भी कर रहे है उसी तरह पहले से ही सतर्क होके हमे इस रोग का सामना करना चाहिए और इसे फैलने से रोकना चाहिए जिसके लिए आयुर्वेद का योगदान सर्वथा कार्यकर सिद्ध हुआ है। 

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