Ayurvedic Treatment For Joint Pain In Nagpur
जोड़ों के दर्द का घरेलू और प्राकृतिक उपचार
वर्तमान की अति अस्त-व्यस्त जीवन- चर्चा में ज्यादातर लोग जोड़ों या संधियों के दर्द से पीड़ित रहते हैं, जिसके कारण उन्हें चलने-फिरने, उठने-बैठने, रोजमर्रा के कार्य करने में बेहद तकलीफ होती है। हमारे शरीर में हड्डियों के जोड़ (ज्वाइंट) चलने-फिरने, उठने-बैठने आदि सभी क्रिया-कलापों में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इन जोड़ों में किसी भी वजह से कोई समस्या उत्पन्न हो जाने पर दैनिक कायाँ को पूरा करने में कष्ट महसूस होता है। इस प्रकार की समस्याएं सामान्यतया 40-45 वर्ष की आयु के बाद पाई जाती है।
जोड़ों के दर्द से पीड़ित होने पर आहार-विहार का विशेष ध्यान रखना चाहिए। रोगी को वात नाशक आहार का सेवन करना चाहिए तथा वातवर्धक आहार-विहार, जैसे गरिष्ठ भोजन, रात्रि जागरण, भय, शोक, चिंता आदि से दूर रहना चाहिए। भोजन में दूध, शुद्ध घी और फल-सब्जियों को प्रचुर मात्रा में शामिल करना चाहिए। रोगी को सख्त तलवों वाले जूते-चप्पल नहीं पहनना चाहिए तथा सुबह में नियमित रूप टहलने जाना चाहिए। यदि रोगी को पैदल अधिक चलना हो, तो घुटनों पर भी कैंप (गरम पट्टी) पहनकर चलना
चाहिए। यदि वजन अधिक हो, तो वजन कम करने के उपाय करने चाहिए। जैसे-जैसे वजन कम होता है, रोगी के कष्टदाई लक्षण भी अपने आप कम होते जाते हैं। ऐसे रोगी के लिए भ्रमण और हल्के व्यायाम विशेष रूप से उपयोगी है।
जोड़ों के दर्द व अन्य वातज रोगों से छुटकारा पाने के लिए वर्तमान चिकित्सा 2. पद्धति में कई प्रकार की पौड़ानाशक औषधियों का प्रयोग कराया जाता है, जिनको बजह से रोगियों को साइड इफेक्ट के रूप में कई प्रकार के दुष्प्रभाव भी भुगतने पड़
जाते हैं। इसके विपरीत प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद द्वारा उपचार कारगर और निदर्दोष है। इसमें दर्द दूर करने वालो औषधियां अमृतमंजरी वटी, समोरगज केसरी रस, आमवातारि रस, वातगजाकुश रस, अजमोदादि चूर्ण, पुनर्नवादि आदि का प्रयोग लाभप्रद है। इसी प्रकार जोड़ों के दर्द के लिए गुग्गुल के सारे योगों, जैसे महायोगराज गुग्गुल, रास्नादि गुग्गुल, त्रिफला गुग्गुल आदि का विशेष प्रयोग होता है। इसके साथ ही प्रभावित जोड़ों पर 5 स्थानीय रूप से महामाद तेल, संधवादि तेल, महानारायण तेल आदि का प्रयोग किया जाता है।
उपरोक्त औषधियों के साथ हो जोड़ों के दर्द से निजात दिलाने में घरेलू इलाज भी विशेष रूप से कारगर सिद्ध होता है। आयुर्वेद में कई ऐसे घरेलू प्रयोगों का वर्णन मिलता है, जो जोड़ों के दर्द में विशेष रूप से कल्याणकारी है। इसमें से कुछ प्रमुख प्रयोग इस प्रकार है-
1. प्याज का रस और सरसों का तेल बराबर मात्रा में मिलाकर नियमित रूप से मालिश करने से जोड़ों के दर्द में विशेष लाभ मिलता है।
जोड़ों के दर्द से पीड़ित मरीज को हमेशा गरम पानी से ही स्नान करना चाहिए। गरम पानी दर्द व सूजन दूर करता है और रक्त संचार बढ़ाता है।
3. सौ ग्राम मेथीदाना तवे पर संककर दरदरा कूट लें, फिर चौथाई भाग काला नमक मिलाकर रख लें। प्रतिदिन सुबह-शाम दो-दो चम्मच की मात्रा में गरम पानी के साथ इस चूर्ण का सेवन करें। इस प्रयोग से जोड़ों के दर्द में लाभ मिलता है।
4. औषध प्रयोग के लिए मालकांगनों के बीजों का तेल निकाला जाता है। इस तेल की मालिश से दर्द शांत होता है।
5. इंद्रायण की जड़ का चूर्ण 1 ग्राम, पिप्पली का चूर्ण 1 ग्राम और गुड़ 3 ग्राम की मात्रा में मिलाकर लेना जोड़ों के दर्द में लाभप्रद है।
6. मेहंदी की पत्तियों को पीसकर दर्द से प्रभावित जोड़ों पर लगाएं, फिर पट्टी बांध दें। नियमित रूप से यह प्रयोग करने से पूरा लाभ मिलता है।
7. मेहंदी की ताजी पत्तियां 250 ग्राम की मात्रा में लेकर 1 लीटर पानी में उबालकर जब पानी आधा रह जाए, तब उतारकर छान लें। अब इस छने हुए पानी को 500 मिलीलीटर तिल के तेल में डालकर धीमी आंच पर पकाएं। जब सारा पानी जलकर केवल तेल शेष रह जाए, तो इसे शीशी में 14 भरकर रख लें। इस तेल से मालिश करने से कमर व जोड़ों का दर्द दूर हो जाता है।
8. करंज के पत्तों के काढ़े से सिंकाई और इसके बीजों के तेल से मालिश करने से जोड़ों के दर्द में लाभ मिलता है।
9. सर्दी में जोड़ों में दर्द होने पर सोंठ का चूर्ण 3-3 ग्राम की मात्रा में सुबह- शाम पानी के साथ लेना लाभप्रद है। यदि पुराना दर्द हो, तो इस चूर्ण के साथ महायोगराज गुग्गुल की एक-एक गोली का भी सेवन करना चाहिए।
10. अदरक के रस में सेंधा नमक मिलाकर मालिश करना जोड़ों के दर्द में लाभप्रद है।
11. सरसों के तेल में सेंधा नमक मिलाकर
आयुर्वेद-विकास, नवम्बर 2023
मालिश व सिंकाई करने से जोड़ों के दर्द में लाभ मिलता है।
12. नीम का तेल लगाकर हल्के हाथों से मालिश करने से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है।
13. सुबह में नीम की पत्तियों को घोटकर पीसकर रस निकालकर एक चम्मच की मात्रा में केवल एक चार 4-6 दिनों तक सेवन करना जोड़ों के दर्द में लाभप्रद है।
जोड़ों के दर्द में हींग का नियमित प्रयोग लाभप्रद है। हींग जोड़ों में स्वाभाविक लोच पैदा करती है। हींग और सोंठ डालकर गरम किए गए तेल की मालिश करने से जोड़ों का दर्द दूर होता है।
15. लहसुन जोड़ों के दर्द के लिए रामबाण औषधि है। यदि जोड़ों का दर्द सताए, तो सरसों के तेल में लहसुन और अजवाइन डालकर गरम करके उस तेल से मालिश करनी चाहिए।
16. जोड़ों के दर्द व अन्य वातज रोगों में अलसी बहुत ही लाभदायक साबित हुई है। अलसी में मौजूद लिगनेन और ओमेगा-3 फैटी एसिड्स प्रदाह को शांत करता है। अलसी प्रयोग से जोड़ों के दर्द व सूजन में राहत मिलती है। ट्यूनिस में हुए शोध से यह साबित हुआ है कि अलसी शरीर में यूरिक का
स्तर कम करती है। अलसी को रोटी के रूप में लेना सुविधाजनक रहता है। इसके अलावा चूर्ण के रूप में भी इसका प्रयोग किया जा सकता है।
17. एरंड वातज रोगों में गुणकारी है। यह जोड़ों के दर्द व सूजन में उपयोगी है। एरंड कफ-वातशामक है। इसका बाह्य प्रयोग वातहर, शोधहर और वेदनाशामक है। संधिशोथ और संधिवात में इसके पत्ते बांधने से लाभ मिलता है। एरंड तेल का आभ्यांतर प्रयोग वदनास्थापक और वातशामक है। एरंड का मूल कल्क 10-20 ग्राम, बोज 2-6 दाने और तेल 4-16 ग्राम की मात्रा में प्रयोग में लाया जा सकता
है।
18. औषधि के रूप में निर्गुडी (सम्हालू) के पत्र, मूल व बीज का प्रयोग किया जा सकता है। यह कफ वातशामक है। इसका वाह्य प्रयोग वेदनास्थापक व शोधहर है। संधिवात में निर्गुडी के पत्ते गरम करके बांधने से लाभ मिलता है। इसका आभ्यंतर प्रयोग वेदना- स्थापक है। निर्गुडी का पत्र स्वरस 10-20 मिलीलीटर और मूल त्वक चूर्ण 3-6 ग्राम तक की मात्रा में प्रयोग किया जा सकता है। निगुंडी तेल से मालिश करने के बाद सिंकाई करने से जोड़ों के दर्द व सूजन में पूरा लाभ मिलता है।
19. औषधि के रूप में कुचला के बीज- मज्जा का प्रयोग किया जा सकता है। यह कफ-वात शामक है। इसकी उपयोग मात्रा 60-250 मिलीग्राम है। अति मात्रा में तथा अशोधित दशा में इसका प्रयोग ओजक्षय के द्वारा वायु को प्रकुपित करके आक्षेप (झटके) पैदा करता है। इसका वाह्य लेप वेदना स्थापक व शोथहर है। इसका आध्यंतर प्रयोग वात शामक होने से वेदनास्थापक है। संधिवात में इसके बीजों का लेप किया जाता है।
20. सहिजन की फलियों की सब्जी खाने से वातज रोगों से उत्पन्न दर्द, सूजन आदि लक्षण दूर होते हैं। औषधि के रूप में इसके मूल, त्वक, छाल पत्र और बीज का प्रयोग किया जा सकता है। इसकी छाल व पत्रों का स्वरस असह्य पीड़ा को शांत करता है। सहिजन का मूल त्वक स्वरस, छाल स्वरस और पत्र स्वरस का 10-20 मिलीलीटर तथा बीज चूर्ण का 1-3 ग्राम तक की मात्रा में प्रयोग किया जाता है। इसके बीज का तेल दर्द में मालिश के लिए प्रयोग में लाया जाता hai
21. जोड़ों के दर्द व अन्य वातज रोगों में हरड़ बेहद गुणकारी है। हरड़ को शुद्ध घी में भूनकर सेवन करना विशेष रूप से लाभप्रद है। औषधि के रूप में हरड़ का चूर्ण 3-6 ग्राम की मात्रा में प्रयोग में लाया जा सकता है। हरड़ का लेप शोथहर और वेदनास्थापक है।
22. अश्वगंधा वातज रोग-विकारों में अतीव हितकारी है। औषधि के रूप में इसकी जड़ का प्रयोग किया जाता है। अश्वगंधा की जड़ का चूर्ण 3-6 ग्राम तक की मात्रा में सुबह में खाली पेट दूध के साथ लेना चाहिए।
23. चिकित्सा में शतावरी के भौमिक कांड (भूमि के अंदर उगने वाला कंद) का प्रयोग किया जाता है। यह वात- पित्तशामक है। शतावरी से सिद्ध तेल वात रोग और दौबर्त्य (कमजोरी) में प्रयोग में लाया जाता है। जोड़ों के दर्द में शतावरी का चूर्ण दूध के साथ दर्द में शतावरी का चूर्ण दूध के साथ प्रयोग करना लाभप्रद है। औषधि के रूप में शतावरी का कंद स्वरस 10-20 मिलीलीटर, क्वाथ 50-100 मिलीलीटर और चूर्ण 3-6 ग्राम की मात्रा में प्रयोग किया जा सकता है।
24. औषधि के रूप में बला के पंचांग (फल, बीज, जड़, पत्ते व छाल) का प्रयोग किया जाता है। जोड़ों का दर्द आदि वातज रोगों को शांत करने के लिए बला बेहद गुणकारी होती है। बला के पंचांग से निर्मित बलारिष्ट वातज रोगों को शांत करता है। भोजन के बाद दोनों समय 15-20 मिलीलीटर की मात्रा में इतना ही पानी मिलाकर बलारिष्ट को प्रयोग में लाया जा सकता है।