क्या महिलाओं में दर्द सहने की क्षमता अधिक होती है? By Dr Shraddha Dhote Best Ayurvedic Gynecologist In India

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Best Ayurvedic Gynecologist In India-एक ऐसो अनुभूति है जो व्यक्ति को पीड़ा पहुंचाता है। । इससे उसका दैनिक कामकाज यानि दिनचर्या भी प्रभावित होती है। दर्द तो किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है, फिर चाहे वह बच्चे हों या बूढ़े, किशोर हों या युवा, महिला हो या पुरुष। क्या दर्द सहने या बर्दाश्त करने की क्षमता पुरुषों से अधिक महिलाओं में होतो

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प्रसव पीड़ा से प्रायः सभी महिलाओं को गुजरना पड़ता है। इस दौरान होने वाला दर्द सभी ददाँ में सर्वाधिक होता है। पुरुष चाहे वह पति हो या पिता, इस दर्द को कल्पना तक नहीं कर सकते। प्रसव पीड़ा के आगे पुरुषों के सारे दर्द फीके होते हैं।

सिजेरियन डिलीवरी होने पर भी उसे महीनों तक दर्द सहना पड़ता है। परिवार नियोजन हेतु ऑपरेशन कराने का दर्द भी उसे ही झेलना पड़ता है। पुरुष तो नसबंदी के नाम से हो घबराकर पीछे हट जाते हैं। १० प्रतिशत प्रकरण महिला नसबंदी के ही रोते हैं।

कुछ दर्द केवल महिलाओं को ही होते है. जिसको अनुभूति पुरुष नहीं कर सकते। इसमें शामिल हैं-गर्भाशय से जुड़ी समस्याएं, स्तनों में होने वाली पोड़ा। गर्भाशय या स्तन कैंसर की स्थिति में होने बाला दर्द अत्यधिक पौड़ा दायक होता है।

माहवारी के दौरान अधिकांश महिलाओं को पेट, पीठ, कमर दर्द की शिकायत होती है। पीड़ा इतनी अधिक होती है कि उसे केवल भुक्तभोगी ही जान सकता है। इसके बावजूद वे आम दिनों को भांति काम करतो है।

एक उम्र के पश्चात् महिलाओं को जोड़ों में दर्द, सूजन आदि को समस्या होती है। चलने-फिरने, उठने-बैठने और अंगों के संचालन में परेशानी होती है। लेकिन वह उफ तक नहीं करती, अपितु घर को सारी जिम्मेदारों को पूर्ण करती है। यदि वह कामकाजी महिला है, तो दर्द होते हुए भी वे घर और दफ्तर दोनों मोर्चे संभालती हैं।

दांत का दर्द अत्यंत पीड़ादायक होता है। पुरुष हो तो तुरंत दंत चिकित्सक के पास पहुंच जाए, लेकिन महिलाएं उसे बर्दाश्त करती हैं और अति होने पर ही दंत चिकित्सक से इलाज कराती हैं। जबकि दर्द दोनों को समान होता है।

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सौने में दर्द होने पर पुरुष तुरंत हॉस्पिटल जाता है, भले ही वह गैस का साधारण दर्द ही क्यों न हो, जबकि महिलाएं जब तक कि हार्ट अटैक के अन्य लक्षण दिखाई नहीं देते, वे उसकी परवाह नहीं करता।

जरा भी पेट दर्द होने पर पुरुष दौड़ा-दौड़ा डॉक्टर के पास जाता है।

एक्स-रे, सोनोग्राफी, सीटीस्कॅन, आदि करता है, जबकि महिलाएं उसे बर्दाशत करती है या स्वतः ठीक होने का इंतजार करती है।

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दर्द सहने में महिलाएं लाजवाब है। साधारण या छोटे-मोटे दर्द, तकलीफ को तो वे व्यक्त तक नहीं करतीं। न पति को और न हो अन्य किसी परिजन को इस बारे में बताती हैं। जब तक बर्दाश्त होता है, करती हैं। घर वालों को तभी बतातो है, जब वह असहनीय हो जाता है।

सिर दर्द होने पर पुरुष दवा-गोली खाकर आराम फरमाते हैं या सोने की कोशिश करते हैं, जबकि महिलाएं दर्द के रहते हुए भी काम में जुटी रहती हैं। यदि वे आराम फरमाएं, तो घर की सारी व्यवस्था ही गड़बड़ा जाए।

दोनों के कामकाजी होने पर, जब पति दफ्तर से साथ लौटते हैं, तो टी.वी. के सामने बैठकर चाय का इंतजार करते हुए आराम फरमाते हैं। पति की नजर में यकता केवल बहो है, पत्नी नहीं। कैसी मानसिकता है यह। यही कारण है कि थको हारी पत्नी घर आते ही पुनः काम में लग जाती है। क्या उसे दर्द, थकान नहीं होती ?

महिलाओं को चाहे कितना ही दर्द, पोड़ा हो, लेकिन जब पति या बच्चे बीमार होते हैं, तो वह अपना दर्द भूलकर उनकी सेवा सुश्रुषा में जुट जाती है। जरूरत होने पर ऑफिस से छुट्टी लेती है। यह उसका अपने परिवार के प्रति समर्पण हो तो है। जबकि महिला के बीमार पड़ने या दर्द सेकराहने पर भी पुरुष न तो ऑफिस से छुट्टी लेता है और न ही उसकी सेवा सुश्रुष करने की भावना उनके मन में उपजती है। शायद वे अपनी पत्नी के दर्द को समझ नहीं पाते।

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सच तो यह है कि महिलाएं दर्द-पीड़ा सहती हैं, इसलिए उन पर पुरुषों का ध्यान नहीं जाता। घर-परिवार में लड़कियों को बचपन से ही दर्द सहन की शिक्षा और परिवार के प्रति समर्पण का भाव सिखाया जाता है। क्योंकि उन्हें पराए घर जाना है और अपनी गृहस्थी संभालनी है। यहीं से लड़के-लड़कियों की परवरिश में भेदभाव शुरू होता है। भागते-दौड़ते लड़का गिर जाए, तो मां उससे कहती है, बेटा चोट तो नहीं लगी है, दर्द तो नहीं हो रहा? जबकि बेटी के गिरने पर मां कहती है, कुछ नहीं हुआ, चींटी मर गई। यानि बेटी को दर्द बर्दाश्त करने की सीख मां ही देती है।

सच तो यह है कि महिलाएं अपने दर्द की अनदेखी करती हैं। क्योंकि गृहस्थी की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर होती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे अपने दर्द या पीड़ा को नजरअंदाज कर उसे सहती रहें। अपनी सेहत का ख्याल वे नहीं रखेंगी, तो कौन रखेगा ? कई बार साधारण सा लगने वाला दर्द भी किसी बड़ी बीमारी का संकेत हो सकता है। इसलिए दर्द की शुरुआत में ही डॉक्टर को बता देना चाहिए। समय रहते उपचार कराना आवश्यक हो सकता है।

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